Lekhika Ranchi

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रंगभूमि--मुंशी प्रेमचंद

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दारोगा माहिर अली चले, नि:शस्त्र पुलिस और सशस्त्र पुलिस और मजदूरों का एक दल उनके साथ चला, मानो किसी किले पर धावा करने जा रहे हैं। उनके पीछे-पीछे जनता का एक समूह भी चला। राजा ने इन आदमियों के तेवर देखे, तो होश उड़ गए। उपद्रव की आशंका हुई। झोंपड़े को गिराना इतना सरल न प्रतीत हुआ, जितना उन्होंने समझा था। पछताए कि मैंने व्यर्थ माहिर अली को यह हुक्म दिया। जब मुहल्ला मैदान हो जाता, तो झोंपड़ा आप-ही-आप उजड़ जाता, सूरदास कोई भूत तो है नहीं कि अकेला उसमें पड़ा रहता। मैंने चिंउटी को तलवार से मारने की चेष्टा की! माहिर अली क्रोधी आदमी है, और इन आदमियों के रुख भी बदले हुए हैं। जनता क्रोध में अपने को भूल जाती है, मौत पर हँसती है। कहीं माहिर अली उतावली कर बैठा, तो निस्संदेह उपद्रव हो जाएगा। इसका सारा इलजाम मेरे सिर जाएगा। यह अंधा आप तो डूबा ही हुआ है, मुझे भी डुबाए देता है। बुरी तरह मेरे पीछे पड़ा हुआ है। लेकिन इस समय वह हाकिम की हैसियत में थे। हुक्म को वापस न ले सकते थे। सरकार की आबरू में बट्टा लगने से कहीं ज्यादा भय अपनी आबरू में बट्टा लगने का था। अब यही एक उपाय था कि जनता को झोंपड़े की ओर न जाने दिया जाए। सुपरिंटेंडेंट अभी-अभी मिल से लौटा था, और घोड़े पर सवार सिगार पी रहा था कि राजा साहब ने जाकर उससे कहा-इन आदमियों को रोकना चाहिए।

उसने कहा-जाने दीजिए, कोई हरज नहीं, शिकार होगा।
'भीषण हत्या होगी।'
'हम इसके लिए तैयार हैं।'
विनय के चेहरे का रंग उड़ा हुआ था। न आगे जाते बनता था, न पीछे। घोर आत्मवेदना का अनुभव करते हुए बोले-इंद्र, मैं बड़े संकट में हूँ।
इंद्रदत्ता ने कहा-इसमें क्या संदेह है।
जनता को काबू में रखना कठिन है।'
'आप जाइए, मैं देख लूँगा। आपका यहाँ रहना उचित नहीं।'
'तुम अकेले हो जाओगे!'
'कोई चिंता नहीं।'
'तुम भी मेरे साथ क्यों नहीं चलते? अब हम यहाँ रहकर क्या कर लेंगे, हम अपने कर्तव्य का पालन कर चुके।'
'आप जाइए। आपको जो संकट है, वह मुझे नहीं। मुझे अपने किसी आत्मीय के मान-अपमान का कम भय नहीं।'
विनय वहीं अशांत और निश्चल खड़े रहे, या यों कहो कि गड़े रहे, मानो कोई स्त्री घर से निकाल दी गई हो। इंद्रदत्ता उन्हें वहीं छोड़कर आगे बढ़े, तो जन-समूह उसी गली के मोड़ पर रुका हुआ था, जो सूरदास के झोंपड़े की ओर जाती थी। गली के द्वार पर पाँच सिपाही सँगीनें चढ़ाए खड़े थे। एक कदम आगे बढ़ना संगीन की नोक को छाती पर लेना था। संगीनों की दीवार सामने खड़ी थी।
इंद्रदत्ता ने एक कुएँ की जगत पर खड़े होकर उच्च स्वर से कहा-भाइयो, सोच लो, तुम लोग क्या चाहते हो? क्या इस झोंपड़ी के लिए पुलिस से लड़ोगे? अपना और अपने भाइयों का रक्त बहाओगे? इन दामों यह झोंपड़ी बहुत महँगी है। अगर उसे बचाना चाहते हो, तो इन आदमियों ही से विनय करो, जो इस वक्त वरदी पहने, संगीनें चढ़ाए यमदूत हुए तुम्हारे सामने खड़े हैं। और यद्यपि प्रकट रूप से वे तुम्हारे शत्रु हैं, पर उनमें एक भी ऐसा न होगा, जिसका हृदय तुम्हारे साथ न हो, जो एक असहाय, दुर्बल, अंधो की झोंपड़ी गिराने में अपनी दिलचस्पी समझता हो। इनमें सभी भले आदमी हैं, जिनके बाल-बच्चे हैं, जो थोड़े वेतन पर तुम्हारे जान-माल की रक्षा करने के लिए घर से आए हैं।
एक आदमी-हमारे जान-माल की रक्षा करते हैं, या सरकार के रोब-दाब की?
इंद्रदत्ता-एक ही बात है। तुम्हारे जान-माल की रक्षा के लिए सरकार के रोब-दाब की रक्षा करनी परमावश्यक है। इन्हें जो वेतन मिलता है,वह एक मजूर से भी कम हैण्ण्ण्।
एक प्रश्न-बग्घी-इक्केवालों से पैसे नहीं लेते?
दूसरा प्रश्न-चोरियाँ नहीं कराते? जुआ नहीं खेलाते? घूस नहीं खाते?
इंद्रदत्ता-यह सब इसलिए होता है कि वेतन जितना मिलना चाहिए, उतना नहीं मिलता। ये भी हमारी और तुम्हारी भाँति मनुष्य हैं, इनमें भी दया और विवेक है, ये भी दुर्बलों पर हाथ उठाना नीचता समझते हैं। जो कुछ करते हैं, मजबूर होकर। इन्हीं से कहो, अंधो पर तरस खाएँ,उसकी झोंपड़ी बचाएँ। (सिपाहियों से) क्यों मित्रो, तुमसे इस दया की आशा रखें? इन मनुष्यों पर क्या करोगे?
इंद्रदत्ता ने एक ओर जनता के मन में सिपाहियों के प्रति सहानुभूति उत्पन्न करने की चेष्टा की और दूसरी ओर सिपाहियों की मनोगत दया को जागृत करने की। हवलदार संगीनों के पीछे खड़ा था। बोला-हमारी रोजी बचाकर और जो चाहे कीजिए। इधर से न जाइए।
इंद्रदत्ता-तो रोजी के लिए इतने प्राणियों का सर्वनाश कर दोगे? ये बेचारे भी तो एक दीन की रक्षा करने आए हैं। जो ईश्वर यहाँ तुम्हारा पालन करता है, वह क्या किसी दूसरी जगह तुम्हें भूखों मारेगा? अरे! यह कौन पत्थर फेंकता है? याद रखो, तुम लोग न्याय की रक्षा करने आए हो, बलवा करने नहीं। ऐसे नीच आघातों से अपने को कलंकित न करो। मत हाथ उठाओ, अगर तुम्हारे ऊपर गोलियों की बाढ़ भी चले...।
इंद्रदत्ता को कुछ कहने का अवसर न मिला। सुपरिंटेंडेंट ने गली के मोड़ पर आदमियों का जमाव देखा, तो घोड़ा दौड़ाता उधर चला। इंद्रदत्ता की आवाज कानों में पड़ी, तो डाँटकर बोला-हटा दो इसको। इन सब आदमियों को अभी सामने से हटा दो। तुम सब आदमी अभी हट जाओ,नहीं हम गोली मार देगा।
समूह जौ-भर भी न हटा।
'अभी हट जाओ, नहीं हम फायर कर देगा।'
कोई आदमी अपनी जगह से न हिला।
सुपरिंटेंडेंट ने तीसरी बार आदमियों को हट जाने की आज्ञा दी।
समूह शांत, गंभीर, स्थिर रहा।
फायर करने की आज्ञा हुई, सिपाहियों ने बंदूकें हाथ में लीं। इतने में राजा साहब बदहवास आकर बोले-... लेकिन हुक्म हो चुका था। बाढ़ चली, बंदूकों के मुँह से धुँआ निकला, धाँय-धाँय की रोमांचकारी धवनि निकली और कई चक्कर खाकर गिर पड़े। समूह की ओर से पत्थरों की बौछार होने लगी। दो-चार टहनियाँ गिर पड़ी थीं, किंतु वृक्ष अभी तक खड़ा था।
फिर बंदूकें चलने की आज्ञा हुई। राजा साहब ने अबकी बहुत गिड़गिड़ाकर कहा डतण् ठतवूदए जीमेम ेीवजे ंतम चपमतबपदह उल ीमंतज! किंतु आज्ञा मिल चुकी थी, दूसरी बाढ़ चली, फिर कई आदमी गिर पड़े। डालियाँ गिरीं, लेकिन वृक्ष स्थिर खड़ा रहा।
तीसरी बार फायर करने की आज्ञा दी गई। राजा साहब ने सजल नयन होकर व्यथित कंठ से कहा-डतण् ठतवूदए दवू प् ंउ कवदम वित! बाढ़ चली; कई आदमी गिरे और उनके साथ इंद्रदत्ता भी गिरे। गोली वक्ष:स्थल को चीरती हुई पार हो गई थी। वृक्ष का तना गिर गया!
समूह में भगदड़ पड़ गई। लोग गिरते-पड़ते, एक-दूसरे को कुचलते, भाग खड़े हुए। कोई किसी पेड़ की आड़ में छिपा, कोई किसी घर में घुस गया, कोई सड़क के किनारे की खाइयों में जा बैठा; पर अधिकांश लोग वहाँ से हटकर सड़क पर आ खड़े हुए।
नायकराम ने विनयसिंह से कहा-भैया, क्या खड़े हो, इंद्रदत्ता को गोली लग गई!
विनय अभी तक उदासीन भाव से खड़े थे। यह खबर पाते ही गोली-सी लग गई। बेतहाशा दौड़े और संगीनों के सामने, गली के द्वार पर आकर खड़े हो गए। उन्हें देखते ही भागनेवाले सँभल गए; जो छिपे बैठे थे, निकल पड़े। जब ऐसे-ऐसे लोग मरने को तैयार हैं, जिनके लिए संसार में सुख-ही-सुख है, तो फिर हम किस गिनती में हैं। यह विचार लोगों के मन में उठा। गिरती हुई दीवार फिर खड़ी हो गई। सुपरिंटेंडेंट ने दाँत पीसकर चौथी बार फायर का हुक्म दिया। लेकिन यह क्या? कोई सिपाही बंदूक नहीं चलाता, हवलदार ने बंदूक जमीन पर पटक दी,सिपाहियों ने भी उसके साथ ही अपनी-अपनी बंदूकें रख दीं। हवलदार बोला-हुजूर को अख्तियार है, जो चाहें करें; लेकिन अब हम लोग गोली नहीं चला सकते। हम भी मनुष्य हैं, हत्यारे नहीं।
ब्रॉउन-कोर्टमार्शल होगा।
हवलदार-हो जाए।
ब्रॉउन-नमकहराम लोग।
हवलदार-अपने भाइयों का गला काटने के लिए नहीं, उनकी रक्षा करने के लिए नौकरी की थी।

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